कैसी जादू-भरी वो इक नज़र थी
मैं जागी कुछ ऐसे…….
जैसे कभी सोई ही न थी
जिसे सूना रेगिस्तान समझा……
वहाँ कल-कल बहती एक नदी थी
रात यूँ रोशन हुई………
जैसे कभी अंधेरी ही न थी
आँखें सपनों से ऐसे छलकीं……
जैसे कभी सूखी न थीं
कैसी जादू-भरी वो इक नज़र थी
मणि
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